सेक्‍स लाइफ को यूं बर्बाद करता है डायबिटीज

सेक्‍स लाइफ को यूं बर्बाद करता है डायबिटीज

डॉक्‍टर अनूप मिश्रा

डायबिटीज मरीज के यौनिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी कई तरीके से प्रभावित करता है। खासकर मर्दों में ये परेशानी बहुत आम है। मरीज इस स्थिति के बारे में डॉक्‍टर से बात करने में कतराते हैं जिसके कारण ऐसे मामलों की सही संख्‍या कभी पता नहीं चलती। दूसरी ओर मरीज इस समस्‍या के इलाज के लिए वैकल्पिक चिकित्‍सा पद्धतियों अथवा अवैज्ञानिक पद्धतियों का सहारा लेते हैं।

डायबिटीज निम्‍नलिखित तरीकों से मरीज के यौन क्रिया-कलापों को प्रभावित कर सकता है:

  1. लगातार ऊंचा ब्‍लड शुगर स्‍तर शरीर में सेक्‍सुअल गतिविधियों के लिए जिम्‍मेदार हार्मोनों (टेस्‍टोस्‍टेरॉन, एस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍टेरॉन) में असंतुलन पैदा कर सकता है।
  2. लंबे समय से डायबिटीज बने रहने से ऐसे मरीज जिनमें लगातार ब्‍लड शुगर का स्‍तर ऊंचा रहता हो, उनमें यौनांगों (शिश्‍न) के नर्व क्षतिग्रस्‍त हो सकते हैं जिसके कारण शिश्‍न में कड़ेपन (इरेक्‍टाइल डिस्‍फंक्‍शन) में परेशानी, स्‍खलन नहीं होना और सीमेन वापस यूरीनरी ब्‍लाडर में जाने की समस्‍या आ सकती है। महिलाओं में योनि में गीलेपन की कमी और इसके कारण इंटरकोर्स के दौरान दर्द की समस्‍या हो सकती है। मर्द और औरत दोनों को डायबिटीज के कारण्‍रा सेक्‍स के प्रति अरूचि हो सकती है।
  3. यौनांगों को रक्‍त पहुंचाने वाली आर्टरीज में अवरोध आ सकता है जो ऊपर बताई गई जटिलताओं को और बढ़ा सकता है।

 

लिंग में कड़ापन न आ पाने की समस्‍या (ईडी):

यौन संबंध बनाने के लिए लंबे समय तक शिश्‍न या लिंग में कड़ापन न रह पाना या इसमें मुश्किल होना इरेक्‍टाइल डिस्‍फंक्‍शन कहलाता है। 50 वर्ष से ऊपर के पुरूषों में यह एक आम समस्‍या है। युवावस्‍था में ऐसा अकसर मनोवै‍ज्ञानिक वजहों से होता है।

 

कारण (डायबिटीज के अतिरिक्‍त):  

  • बढ़ती उम्र;
  • मनोवैज्ञानिक तनाव, बिस्‍तर पर सही प्रदर्शन न कर पाने का डर;
  • दवाओं का साइड इफेक्‍ट (जैसे कि, उच्‍च रक्‍तचाप में इस्‍तेमाल होने वाले बीटा ब्‍लॉकर्स और डायू‍रेटिक्‍स (अध्‍याय 16 देखें), एंटी डिप्रेशेंट, एंटी हिस्‍टेमिनिक आदि);
  • हार्मोन टेस्‍टोस्‍टेरॉन की कमी;
  • थायरॉयड तथा अन्‍य हार्मोन से जुड़ी समस्‍या;
  • अनियंत्रित उच्‍च रक्‍तचाप;
  • बहुत अधिक शराब का सेवन;
  • धूम्रपान की गंभीर लत;
  • नशीली दवाओं की लत।

 

जीवनशैली के पैमाने जैसे कि स्‍वस्‍थ संतुलित भोजन, नियमित व्‍यायाम, धूम्रपान और शराब का सेवन बंद करना तथा तनाव घटाने जैसे उपायों से इरेक्‍टाइल डिस्‍फंक्‍शन की समस्‍या को कम किया जा सकता है। सिल्‍डेनाफ‍िल और टडालाफ‍िल इरेक्‍टाइल डिस्‍फंक्‍शन के प्रबंधन में असरकारक दवाएं हैं मगर इनमें सही डॉक्‍टरी निगरानी की जरूरत होती है। इस बीमारी में आर्टरी के ब्‍लॉकेज को खोलने के लिए ऑपरेशन की प्रक्रिया की जरूरत दुर्लभ मामलों में ही पड़ती है।

 

बांझपन (इनफर्टिलिटी) की स्थिति

महिलाएं: महिलाओं में मोटापा बढ़ने से हार्मोन असंतुलन की स्थिति बनती है जिसके कारण उनमें पुरुष हार्मोन बढ़ने लगता है जिसका परिणाम अंडाशयों का आकार बढ़ने और इससे संबंध‍ित बीमारी (पॉलिसिस्‍ट‍िक ओवेरियन डिजीज) के रूप में सामने आता है। साथ ही मासिक स्राव का चक्र अनियंत्रित होने लगता है और शरीर तथा चेहरे पर बाल और मुंहासे बढ़ जाते हैं। इस स्थिति में, मोटापे के कारण मेल हार्मोन और इंसुलिन का स्‍तर शरीर में ज्‍यादा हो जाता है। ये सभी डायबिटीज से आगे दौड़ने वाले लक्षण हैं।

पुरूष: मर्दों में मोटापे के कारण स्‍पर्म की संख्‍या प्रभावित होती है जिसके कारण इनफर्टिलिटी की समस्‍या हो सकती है।

(डॉक्‍टर अनूप मिश्रा की किताब डायबिटीज विद डिलाइट’ से साभार, ये किताब जल्‍द ही हिंदी के पाठकों के लिए भी उपलब्‍ध होगी)

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